स्ट्रीट व्यू पर पाबंदी के मुद्दे पर बात से पहले संक्षेप में समझ लें कि स्ट्रीट व्यू प्रोजेक्ट है क्या? स्ट्रीट व्यू एक तकनीक है, जिसके जरिए गूगल मैप्स और गूगल अर्थ जैसी सेवाओं पर पैनरमिक या विशालदर्शी तस्वीरें उपलब्ध करायी गई हैं। तस्वीरों को एक खास कार से एकट्ठा किया जाता है। संकरी गलियों में जाने के लिए कैमरा लगी तीन पहियों वाली ट्राईसाइकिल का इस्तेमाल किया जाता है। कारों पर 360 डिग्री में घूम सकने की क्षमता वाले नौ कैमरे लगाए जाते हैं। उनकी ऊंचाई करीब 8.2 फीट रखी जाती है। गाड़ी की लोकेशन का पता रखने के लिए सभी कारों में जीपीएस यूनिट फिट होती है। इसके अलावा थ्रीजी-जीएसएफ और वाईफाई एंटीना भी होता है।
अमेरिका में इस सेवा की लोकप्रियता सबसे अधिक है। इसी तरह ब्रिटेन का लगभग 97 फीसदी इलाका स्ट्रीटव्यू कारों की जद में है। गूगल ने इस सेवा का लगातार विस्तार किया है। हाल में गूगल स्ट्रीट व्यू ने दुनिया के कुछ सर्वाधिक मशहूर संग्रहालयों की वर्चुअल सैर कराने की सुविधा आरंभ की थी। इन ब्रिटेन के टेट म्यूजियम, द नेशनल गैलेरी से लेकर द मेट्रोपोलिटन म्यूजियम न्यूयॉर्क और वर्साले फ्रांस तक कई म्यूजियम शामिल हैं।
स्ट्रीट व्यू सेवा के कई लाभ हैं। किसी जगह का वर्चुअल टूर इसका अहम फीचर है। किसी खास जगह पर लोग अगर दुकान, दफ्तर, रेस्तरां आदि खोज रहे हैं तो उन्हें गली-मुहल्ले के मुताबिक जानकारी मिल सकती है। लोग अपनी जगह के बारे में स्ट्रीट व्यू साइट के एक टूल की मदद से अपनी जानकारी जोड़ भी सकते हैं। कैमरा लगी गली-गली घूमती इन कारों के जरिए कई बार पुलिस को भी मदद मिल जाती है। अमेरिका-ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों में स्ट्रीट व्यू सेवा की लोकप्रियता बहुत है। वजह यह कि यहां जनसंख्या का घनत्व कम और दूरी अधिक है। स्ट्रीट व्यू की लोकप्रियता के मद्देनजर ही 2008 में एप्पल आईफोन के मैप्स एप्लीकेशन में इसे जोड़ा गया।
लेकिन, बेंगलुर में सेवा एक पखवाड़े बाद ही रोक दी गई। गूगल के पत्र में कहा गया है कि बेंगलुरु पुलिस ने इस सेवा पर रोक लगाने को कहा है और उनसे बातचीत के बाद अंतिम फैसला होगा। इधऱ, बेंगलुरु पुलिस के मुताबिक शहर आतंकवादियों के निशाने पर है और गूगल रक्षा विभाग व सरकारी इमारतों की तस्वीरें बिना गृह एवं रक्षा मंत्रालय की अनुमति के बगैर नहीं ले सकता। निश्चित तौर पर सुरक्षा का मसला अहम है। लेकिन, बेंगलुरु पुलिस का फैसला कुछ सवाल जरुर खड़े करता है। मसलन सुरक्षा संबंधी सवालों की पड़ताल पहले क्यों नहीं की गई? यह सेवा दुनिया के 27 देशों में संचालित है तो क्या वहां से प्राप्त डाटा का विश्लेषण किया गया? दरअसल, गूगल की स्ट्रीट व्यू सेवा सूचना तकनीक से जुड़े लोगों के बीच खासी लोकप्रिय है। उनका सवाल सीधा है कि अगर सुरक्षा संबंधी खतरे होते तो अमेरिका और ब्रिटेन में इस सेवा को संचालित नहीं किया जाता और इस तरह की आशंकाओं को पहले निवारण क्यों नहीं किया गया।
हां, निजता संबंधी सवाल गूगल की स्ट्रीट व्यू सेवा से जुड़े रहे हैं। और इसकीआशंका भारत में भी थी। हालांकि, गूगल की तरफ से कई सावधानियां बरतने की बात की गई थी। मसलन, तस्वीरों व नंबर प्लेट को धुंधला कर अपलोड करना और काफी दिनों बाद गूगलमैप्स पर इन्हें उपलब्ध कराना।
स्ट्रीट व्यू से भारत में भी विवाद पैदा हो सकते थे, लेकिन यह सिर्फ अटकलबाजी है। पहली नजर में यह मामला लालफीताशाही और अहम तकनीकी विषय को न समझने से जुड़ा दिखता है। यह फैसला दूसरे शहरों के प्रशासन के लिए सबक है, क्योंकि आने वाले दिनों में उन्हें इस सेवा को लेकर फैसला करना पड़ सकता है।
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